फास्ट इंटरनेट लेकिन किस कीमत पर
विज्ञानियों ने पता लगाया है उपग्रह निगम २०२० के लगते ही हज़ारों माइक्रो -सैटेलाइट्स पृथ्वी के निकट कक्षा में स्थापित करने का मन बना चुकें हैं। बेशक इससे अंतरिक्ष आधारित तेज़तर्रार इंटरनेट सेवाएं मिलने लगेंगी लकिन इसकी खगोल विदों को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।हों की
एक औसत मेज़ के आकार के ये उपग्रह नाइट स्काई लाइन को बाधित कर सकते हैं। ये बड़े पैमाने पर रेडिओ फ्रीकवेंसीज़ काम में लेंगे।
बचपन में आपने भी खुले आकाश की छत के नीचे आसमान के तारे गिनने की होड़ में खुद को शरीक किया होगा। कहीं हज़ारों उपग्रहों की यह श्रृंखला (एक पूरा नेटवर्क )एक त्रासदी की सृष्टि न कर देवे ऐसी आशंका वर्तमान खगोल विज्ञान के माहिरों ने अभिव्यक्त की है ,ये एक बड़ा उपग्रह नेटवर्क होगा जो उस खिड़की को झरोखे को बाधित कर सकता है जो हमें शेष सृष्टि के होने की खबर देती है उसी विंडो में ये उपग्रह कड़ी व्यतिरेक पैदा कर सकती है। इंटरफेयर कर सकती है उस खिड़की को।
प्रकाशीय दूरबीनों से प्राप्त इमेजेज को भी इनमें प्रयुक्त आवृत्तियाँ विघटित (विच्छिन्न )कर सकतीं हैं। विघ्न पैदा कर सकतीं हैं इनमें।
इन छोटे आकार वाले उपग्रहों से बड़ी मात्रा में (इंटेंसिटी )में प्रकाश लौटता है। ये नन्ने उपग्रह कुछ ज़रा ज्यादा ही परावर्तनशील (रिफ्लेक्टिव )हैं।
दूसरे शब्दों में समझें तो ये उपग्रह अंतरिक्ष से प्राप्त उन सिग्नलों को सूचना संकेतों को तहस नहस कर देंगें जिनका इस्तेमाल खगोल शास्त्री करते आये हैं। अंतरिक्ष पिंडों के स्थान पर हमें इन्हीं उपग्रहों के चित्र प्राप्त होंगें क्योंकि परसिहत पृष्ट -भूमि में यही तो डॉट्स के माफिक होंगे।
पृथ्वी की और बढ़ते एस्टेरॉइड्स (लघु ग्रहों की वह पट्टी जो मंगल और गुरु बृहस्पति की कक्षाओं के मध्य में होती हैं वहीँ से ये लघुग्रह पृथ्वी की तरफ आते हैं। सर्व प्रथम यही दृष्टि क्षेत्र में आयेंगे।चित्र के सर्वप्रमुख भाग -अगले भाग में यही दिखलाई देंगे।ऐसे हम उन संभावित यद्यपि विरले ही पृथ्वी की ओर खतरनाक तरीके से बढ़ते लघुग्रहों की हम कोई टोह नहीं लगा पाएंगे। खगोल विदों की यह आशंका निर्मूल नहीं कही जायेगी।
विज्ञानियों ने पता लगाया है उपग्रह निगम २०२० के लगते ही हज़ारों माइक्रो -सैटेलाइट्स पृथ्वी के निकट कक्षा में स्थापित करने का मन बना चुकें हैं। बेशक इससे अंतरिक्ष आधारित तेज़तर्रार इंटरनेट सेवाएं मिलने लगेंगी लकिन इसकी खगोल विदों को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।हों की
एक औसत मेज़ के आकार के ये उपग्रह नाइट स्काई लाइन को बाधित कर सकते हैं। ये बड़े पैमाने पर रेडिओ फ्रीकवेंसीज़ काम में लेंगे।
बचपन में आपने भी खुले आकाश की छत के नीचे आसमान के तारे गिनने की होड़ में खुद को शरीक किया होगा। कहीं हज़ारों उपग्रहों की यह श्रृंखला (एक पूरा नेटवर्क )एक त्रासदी की सृष्टि न कर देवे ऐसी आशंका वर्तमान खगोल विज्ञान के माहिरों ने अभिव्यक्त की है ,ये एक बड़ा उपग्रह नेटवर्क होगा जो उस खिड़की को झरोखे को बाधित कर सकता है जो हमें शेष सृष्टि के होने की खबर देती है उसी विंडो में ये उपग्रह कड़ी व्यतिरेक पैदा कर सकती है। इंटरफेयर कर सकती है उस खिड़की को।
प्रकाशीय दूरबीनों से प्राप्त इमेजेज को भी इनमें प्रयुक्त आवृत्तियाँ विघटित (विच्छिन्न )कर सकतीं हैं। विघ्न पैदा कर सकतीं हैं इनमें।
इन छोटे आकार वाले उपग्रहों से बड़ी मात्रा में (इंटेंसिटी )में प्रकाश लौटता है। ये नन्ने उपग्रह कुछ ज़रा ज्यादा ही परावर्तनशील (रिफ्लेक्टिव )हैं।
दूसरे शब्दों में समझें तो ये उपग्रह अंतरिक्ष से प्राप्त उन सिग्नलों को सूचना संकेतों को तहस नहस कर देंगें जिनका इस्तेमाल खगोल शास्त्री करते आये हैं। अंतरिक्ष पिंडों के स्थान पर हमें इन्हीं उपग्रहों के चित्र प्राप्त होंगें क्योंकि परसिहत पृष्ट -भूमि में यही तो डॉट्स के माफिक होंगे।
पृथ्वी की और बढ़ते एस्टेरॉइड्स (लघु ग्रहों की वह पट्टी जो मंगल और गुरु बृहस्पति की कक्षाओं के मध्य में होती हैं वहीँ से ये लघुग्रह पृथ्वी की तरफ आते हैं। सर्व प्रथम यही दृष्टि क्षेत्र में आयेंगे।चित्र के सर्वप्रमुख भाग -अगले भाग में यही दिखलाई देंगे।ऐसे हम उन संभावित यद्यपि विरले ही पृथ्वी की ओर खतरनाक तरीके से बढ़ते लघुग्रहों की हम कोई टोह नहीं लगा पाएंगे। खगोल विदों की यह आशंका निर्मूल नहीं कही जायेगी।
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